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कपिलवस्तु प्राचीन शाक्य राजघराने की राजधानी हुआ करती थी। इसी राज परिवार के शासक शुद्धोधन सिद्धार्थ के पिता थें। सिद्धार्थ ही आगे चल कर महात्मा बुद्ध कहलाये और उन्हें शाक्यमुनि के नाम से भी जाना जाता है। शाक्य क्षेत्र छठी शताब्दी (ईसा पूर्व) में सोलह महाजनपदों में से एक था। इस राज परिवार के राजकुमार गौतम ने 29 वर्ष की आयु में कपिलवस्तु से प्रस्थान किया और आत्मज्ञान की प्राप्ति के बाद यहाँ उनका दोबारा आगमन 12 वर्षों के बाद हुआ। आज कपिलवस्तु क्षेत्र में कई गाँव शामिल हैं, जिनमे पिपरहवा, गांवरिया और सालारगढ़ मुख्य हैं।

गौतम बुद्ध ने बाल्य और यौवन के सुख का उपभोग कर २९ वर्ष की अवस्था में कपिलवस्तु से महाभिनिष्क्रमण किया। बुद्धत्वप्राप्ति के दूसरे वर्ष वे शुद्धोदन के निमंत्रण पर कपिलवस्तु गए। इसी प्रकार १५ वाँ चातुर्मास भी उन्होंने कपिलवस्तु में न्यग्रोधाराम में बिताया। यहाँ रहते हुए उन्होंने अनेक सूत्रों का उपदेश किया, ५०० शाक्यों के साथ अपने पुत्र राहुल और वैमात्र भाई नंद को प्रवज्जा दी तथा शाक्यों और कोलियों का झगड़ा निपटाया।

बुद्ध से घनिष्ठ संबंध होने के कारण इस नगर का बौद्ध साहित्य और कला में चित्रण प्रचुरता से हुआ है। इसे बुद्धचरित काव्य में "कपिलस्य वस्तु' तथा ललितविस्तर और त्रिपिटक में "कपिलपुर' भी कहा है। दिव्यावदान ने स्पष्टत: इस नगर का संबंध कपिल मुनि से बताया है। ललितविस्तर के अनुसार कपिलवस्तु बहुत बड़ा, समृद्ध, धनधान्य और जन से पूर्ण महानगर था जिसकी चार दिशाओं में चार द्वार थे। नगर सात प्रकारों और परिखाओं से घिरा था। यह वन, आराम, उद्यान और पुष्करिणियों से सुशोभित था और इसमें अनेक चौराहे, सड़कें, बाजार, तोरणद्वार, हर्म्य, कूटागार तथा प्रासाद थे। यहाँ के निवासी गुणी और विद्वान्‌ थे। सौंदरानंद काव्य के अनुसार यहाँ के अमात्य मेधावी थे। पालि त्रिपिटक के अनुसार शाक्य क्षत्रिय थे और राजकार्य "संथागार" में एकत्र होकर करते थे। उनकी शिक्षा और संस्कृति का स्तर ऊँचा था। भिक्षुणीसंघ की स्थापना का श्रेय शाक्य स्त्रियों को है।

पिपरहवा अपने पुरातात्विक स्थल एवं खुदाई के लिए जाना जाता है | एक विशाल स्तूप और कई मठों के खंडहर का अवशेष अवस्थित है। कुछ विद्वानों का मत है कि पिपरहवा गंवरिया शाक्य साम्राज्य की राजधानी कपिलवस्तु के प्राचीन शहर की जगह है जहां भगवान बुद्ध ने अपने जीवन काल के पहले 29 साल व्यतीत किये थे |